Thursday, April 18, 2024
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कांग्रेस रघु, तो भाजपा राम पर लगा सकती हैं दांव!

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न सचिन पायलट चुनाव लडऩे की हिम्मत दिखा रहे हैं और न ही भाजपा जातिवाद से उभर रही है।

अजमेर। अजमेर संसदीय क्षेत्र राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट का अपना निर्वाचन क्षेत्र हैंए लेकिन इसके बावजूद भी पायलट अजमेर से उपचुनाव लडऩे की हिम्मत नहीं दिखा रहे। इसी प्रकार सत्तारूढ़ भाजपा जातिवाद को नकारने का कितना भी दावा करें, लेकिन उपचुनाव में उम्मीदवार को लेकर जातिवाद से उभर नहीं रही है। माना जा रहा है कि जातिगत समीकरणों को देखते हुए ही पूर्व सांसद स्वर्गीय सांवरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लाम्बा ही भाजपा के उम्मीदवार होंगे। जबकि पायलट के मैदान छोडऩे की वजह से पूर्व विधायक रघु शर्मा को मजबूरी में कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया जा रहा है। अभी हाल ही में पायलट ने अजमेर संसदीय क्षेत्र का गहन दौरा किया। पायलट ने कार्यकर्ताओं की हौंसला अफजाई करते हुए दावा किया कि राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ लोगों में जबर्दस्त गुस्सा है। ऐसे में उपचुनाव में कांग्रेस की जीत पक्की है। यदि कार्यकर्ता एकजुट होकर चुनाव लड़ेगा तो कांग्रेस को कोई हरा नहीं सकता। सवाल उठता है कि जब पायलट कांग्रेस की जीत के प्रति इतने आश्वस्त हैं तो फिर स्वयं चुनाव क्यों नहीं लड़ते? क्या पायलट एक बहादुर राजा की छवि नहीं बनाना चाहते? इतिहास गवाह है कि जब&जब राजाओं ने युद्ध के मैदान (अब चुनाव) में स्वयं नेतृत्व किया है, तब-तब कमजोर सेना भी जीत गई है। अब तो पायलट खुद कर रहे हैं कि माहौल कांग्रेस के पक्ष हैं तो फिर पायलट बहादुरी क्यों नहीं दिखाते? पायलट कल्पना करें कि जब वे उपचुनाव जीत जाएंगे तब कांग्रेस की राजनीति में उनका कद कितना बड़ा होगा? पायलट ने अजमेर से दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ा। वे एक बार जीते तथा दूसरी बार हारे। अब तीसरी बार जीत का नम्बर है। कांग्रेस का आम कार्यकर्ता भी मानता है कि यदि पायलट उम्मीदवार होंगे तो उपचुनाव में जीत पक्की है। खुद पायलट ने भी अपने स्तर पर जो गोपनीय सर्वे करवाया, उसमें भी सबसे मजबूत उम्मीदवार पायलट को ही माना गया है। लेकिन इसके बावजूद भी पायलट मैदान छोड़ रहे हैं। पायलट को लगता है कि यदि वे उपचुनाव हार गए तो उनका राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट जाएगा।

भाजपा में जातिवाद
गत लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस के उम्मीदवार सचिन पायलट को हराने के लिए सांवरलाल जाट को उम्मीदवार बनाया था। तब जाट प्रदेश के जलदाय मंत्री थे और लोकसभा का चुनाव लडऩा नहीं चाहते थे, लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के दबाव की वजह से जाट को चुनाव लडऩा पड़ा। जाट मुख्यमंत्री की उम्मीदों पर खरे उतरे और पायलट को करीब पौने दो लाख मतों से हराया। संसदीय क्षेत्र में जाट मतदाताओं की संख्या को देखते हुए ही जाट को उम्मीदवार बनाया गया। वही फार्मूला अब उपचुनाव में भी अपनाया जा रहा है। सहानुभूति के साथ-साथ जाट मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए स्वर्गीय जाट के पुत्र लाम्बा को ही उम्मीदवार बनाया जा रहा है। यानि जातिगत समीकरणों के सामने भाजपा सरकार की उपलब्धियां धरी रह गई हैं। उपचुनाव में उम्मीदीवारी को लेकर सीएम राजे ने भी सर्वे करवाया था। इस सर्वे में लाम्बा की स्थिति को अपेक्षित मजबूत नहीं माना गयाए लेकिन इसके बाद भी सीएम राजे लाम्बा के पक्ष में हैं। सवाल उठता है कि जब वसुंधरा सरकार ने चार वर्ष में अनेक उपलब्धियां हासिल की है तो फिर उपचुनाव में जातीय समीकरण को देखते हुए उम्मीदवार क्यों बनाया जा रहा है।
-एस. पी. मित्तल (07976585247, 09462200121 सिर्फ वाट्सअप के लिए)

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